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बाबुल की चिड़िया

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अब बाबुल की चिड़िया  बड़ी हो गई है , अकेले सफर पर  निकल पड़ी है , आज निकली हैं, अपने घोंसले से अकेली  अनजाने लोगों के बीच  नए सफर की शुरुआत हैं, थोड़ा डर है  थोड़ी झिझक है  लेकिन एक नया  आत्मविश्वास है  आप पीछे मुड़ने का  कोई सवाल नहीं  अब आगे कदम बढ़ाते जाना हैं , खुद को आने वाली कठिनाइयों से बचाना है सम्हल सम्हल कर कदम बढ़ाना हैं  सपनों को पूरा  करते जाना हैं  ना झिझकना हैं  ना डरना‌ हैं  बस विश्वास से आगे बढ़ना हैं। हौसला बुलंद रखना है 

महत्वाकांक्षी होना जरूरी है

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अगर आप जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हो, कुछ पाना चाहते हो, अपने सपनों को हक़ीकत में जीना चाहते हो तो बेशक आपका महत्वाकांक्षी होना जरूरी है। क्योंकि आकांक्षाएँ, अभिलाषाएँ और इच्छाएँ ही वो फ्यूल है जो हमें आगे बढ़ने, मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है। जिस दिन आपकी आकांक्षाएँ ख़त्म हुई, उस दिन जीवन भी थम जायेगा। विकास वही थम जायेगा। इसीलिए जीवन को गतिशील बनाएं रखने के लिए यह जरूरी है कि आप नित प्रति पल, अपनी आकांक्षाओं,  इच्छाओं को सुलगने दे, ये वो अंगारे है जो आपके जीवन के इंजन को गतिशील निरन्तर बनाएं रखती है।                                                                       दोस्तों ! जीवन में पैसा, प्रसिद्धि और सम्मान तो सभी चाहते है लेकिन उनकी कीमत अदा करनी पड़ती है वो है मेहनत, लगन और परिश्रम।  जो ज्यादातर आम इंसान करना नहीं चाहते। लेकिन जो लोग आज सफलता के शिखर पर है, उन...

ज़िद

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दोस्तों ये ज़िद ही तो है जो हमसे सब करवाती है। जब तक हम  ज़िद  नहीं करते, तब तक हमारी ख्वाहिशें पूरी नहीं होती। वह  ज़िद ही  होती है, जिसकी बदौलत हम बड़ा मुकाम हासिल कर पाते हैं। ज़िद करनी ही चाहिए लेकिन कैैैसी? ये इस कविता में पढ़िए - ज़िद हैं  तो मुमकिन हैै। ज़िद  है कुछ हासिल करने की। ज़िद हैं कामयाब  बनने की। ज़िद हैं लक्ष्य को पाने की । जिद है कुछ कर गुजर जाने की। जिद है इंसानियत की मिसाल बनाने की। ज़िद हैं  ख्वाहिशों को पंख लगाने की। ज़िद हैं इतिहास रचने की।  ज़िद हैं आजादी की उड़ान की। ज़िद हैं चाहतो को पूरा करने की। ज़िद हैं  अपनी पहचान बनाने की। तो दोस्तो ! जिद्दी बनिए , हौसला बनाए रखिए, और जुट जाइए ख्वाबों को पूरा करने में। बड़े सपने देखिए और उनके पूरा होने में यकीन रखिए लेकिन मेहनत से कोई समझौता नहीं करें, उसका कोई विकल्प नहीं होता। 

जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं

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  जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं इतने सारे कर्म हमारे प्रतिदिन हमको उलझाते है ये करुँ या ना करुँ कुछ समझ नहीं हम पाते हैं जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं जीवन का मोल समझे बिना ही कई ख़ुदकुशी कर जाते है जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं नित नए संकल्पो, कर्म बंधन में, हम खुद को उलझा ते है आने वाले की दिन की चिंता में इस पल को व्यर्थ गवाते है जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं ना जाने क्या होगा कल, ये सोच सोच पछताते है जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं विश्राम पतन है लेकिन फिर भी हम थोड़ा सुस्ताते है परिश्रम और मेहनत के बल, यहाँ सब अपना आयाम बनाते है जीवन की इस कठिन डगर में हम क्यों विचलित हो जाते हैं दोस्तों ! जीवन इतना भी कठिन नहीं तुम क्यों इतना घबराते हो चलो उठकर संघर्ष करो ! इस जीवन को सफल बनाते हैं।

कम्फर्ट जोन से बाहर निकले

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"सच्ची सफलता के लिए कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना बहुत जरूरी है" कोरोना संकट के बीच विपरीत परिस्थितियों में सफलता का सूत्रसुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में अपनी जिंदगी में परिवर्तन लाना सफलता की सबसे बड़ी कुंजी होती है। स्वयं के अंदर बदलाव लाकर आप सफलता की हर मंजिल हासिल कर सकते हैं। खुद में बदलाव लाना किसी के लिए भी एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। दूसरों को सिखाना और दूसरों को बदलना आसान होता है, पर खुद को बदलना बहुत मुश्किल काम है। पर अपनी ताकत और क्षमता से अपने आप को बदल सकते हैं। आप जिस परिवेश में रहते हैं, जैसे लोगों के साथ रहते हैं, उसका आपकी जिंदगी पर काफी प्रभाव पड़ता है। मेरे जीवन पर मां और पिता जी से ज्यादा मेरी दादी का प्रभाव पड़ा। दादी बचपन में मुझसे पूछती थीं की बताओ भगवान ने तुम्हे सबसे बड़ा उपहार क्या दिया, फिर खुद बताती की भगवान ने तुम्हे जो ताकत दी जो क्षमता दी वही सबसे बड़ा उपहार है। दादी फिर पूछती तुम भगवान को सबसे बड़ा उपहार क्या दे सकते हो। मेरे चुप रहने पर कहतीं अपनी ताकत अपनी क्षमता का उपयोग कर एक अच्छा इंसान बनो यही तुम्हारी तरफ से भगवान के लिए सबसे ब...

आजकल की दोस्ती

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ये ज़िन्दगी क्या है ! समझ नहीं आता। रोज कोई न कोई नई परेशानी. ये रिश्ते इतने मुश्किल क्यों होते है ? फिर चाहे वो दोस्ती का रिश्ता ही क्यों न हो ? कहते है कि हर रिश्ते को बहुत ही प्यार से सहेजना पड़ता है , अगर एक बार टूट गया तो गांठ पड़ जाती है। फिर भी सब कुछ जानते हुए हम कई बार ये गलती कर बैठते है जिससे रिश्तों  में खटास पड़ जाती है। लेकिन फिर भी हम अपनी गलती को मानने के लिए तैयार नहीं होते।  कारण हम चाहते है कि लोग हमारे मन की बात  समझ जाए। हमारे बिना बोले ही वो हमारी हर जरूरत को पूरा करे। जैसे माँ होती है ना जो बिना बोले ही अपने बच्चों के मन की बात समझ जाती है वैसे ही उम्मीद हम दुनियादारी के रिश्तों से लगा बैठते है। लेकिन माँ तो माँ होती है , उसकी जगह दूसरा कोई नहीं ले सकता। बस इन्हीं छोटी छोटी गलतियों की वजह से हम अपने रिश्तें ख़त्म कर देते है। और जीवनभर पश्चताप की अग्नि में सुलगते रहते है। क्यूंकि बात फिर स्वाभिमान पर आ जाती है कि आखिर पहल करें कौन ? हम क्यों करें गलती उसकी है वो माफी माँगे , और सामने वाला भी यही भावना से पहल नहीं करता फिर धीरे धीरे बोलचाल बंद फि...

हिंदी दिवस

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रसों की रानी है हिन्दी संस्कृत की सहेली है हिन्दी  अलंकारों से अलंकृत है हिन्दी छंदों की छाया है हिन्दी संधि-समास का संगम है हिन्दी गद्य-पद्य का‌ मेल है हिन्दी हृदय‌ की अभिव्यक्ति है हिन्दी मेरी प्रिय भाषा है हिन्दी " तू गुरुर हैं मेरा,  तुझसे ही इस देश की शान है।    तुझको मेरा, साष्टांग दंडवत प्रणाम है।। "                  ‌                                   

आपदाएँ कितना कुछ सिखा जाती है...?

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 आपदाएँ !!  चाहे वो बाढ़ हो, तूफान हो, या भूकंप प्रकृति का प्रकोप होती है। हम अपना गुस्सा कैसे निकलते हैं वैसे ही प्रकृति भी अपना ग़ुस्सा इन्ही आपदाओं के जरिए निकलती है।  अगर प्रकृति में जुबान होती तो वो शायद ये बयां करती की तुम मनुष्यों ने मुझ पर कितना अत्याचार किया है। कितनी तकलीफ़े दी है कितना दर्द दिया हैं.................   असहनीय वेदना !!                                                                  पर वाह री प्रकृति!  तूने मनुष्यो को सबक सीखने का क्या नायाब तरीका ढूंढ निकाला है। लेकिन तेरी इन आपदाओं ने ना जाने कितने निरपराधों को मौत के घाट उतारा है। प्रकृति हर साल अपने रौद्र रूप में आकर अपनी अहमियत का अहसास करना चाहती है । लेकिन हम अहंकारी मनुष्य आपदाओं के जाते ही सब भूल जाते है और फिर से प्रकृति का दोहन शुरू कर दे...

उड़ान

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 घर के आँगन की रौनक, माँ की परछाई, पिता का गुरुर, भाई की कलाई की शोभा आदि न जाने कितनी उपमाएं दी है सबने बेटियों को। हमेशा बेटी को फूल सी नाजुक समझा, माना और बताया। पर बेटी से कभी किसी ने नहीं पूछा की तुझे कौन सी उपमा चाहिए ? बस हमेशा से बेटियों पर हक जताते रहे और क्यों न जताए आख़िर बेटी हो  तुम हमारे घर की।  पर मुझे नहीं पसंद बेटी होने की बंदिश। आज़ाद होना चाहती हूँ इस समाज की जंजीरों से। इस कलिष्ट मानसिकता वाले समाज की सोच से दूर जाना चाहती हूँ। दम घुटता हैं मेरा ! मन करता है सभ कुछ छोड़कर कही चली जाऊं। जहाँ सिर्फ शांति हो और कोई समाज की बंदिश न हो, एक ऐसी दुनिया की तलाश में हूँ जो मेरे हिसाब से मुझे जीने दे।  मुझे इस दुनिया की जंजीरो से आज़ाद होना है। आखिर कब तक यूँ ही सहती रहूंगी, घुटती रहूँगी, तड़पती रहूँगी। अब नहीं होता !!    मुझे बचपन से यही सिखाया गया है कि बेटियाँ हमेशा मर्यादा में रहती है, तुम्हे भी रहना होगा अन्यथा तुम्हे ये समाज चरित्रहीन करार देगा। पर अगर यही काम बेटे करें तो उनकी गलतियों पर पर्दा दाल दिया जाता है।  आखिर ये समाज की कै...

मेरा मुल्क मेरा देश

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                                                                                               देश प्रेम  इस देश ने हजारों वर्षों की ग़ुलामी देखी हैं ।  इस देश ने जवानों को रणभूमि में शहीद होते देखा हैं । इस देश ने भूख से बिलखते बच्चों की लाचारी देखी हैं । इस देश ने चंद पैसों के लालच में मानव को दानव बनाते देखा हैं । इस देश ने अपनी आन की रक्षा हेतु वीरांगनाओं को जौहर करते देखा हैं।  इस देश ने बूढ़े बाप के कंधे पर जवान बेटे का जनाजा उठते देखा हैं । इस देश ने एक माँ , एक बहन , एक बेटी के साथ अत्याचार होते देखा हैं।  इस देश ने एक सुहागन का सुहाग उजड़ते देखा है।  इस देश ने बहुत कुछ देखा है , पर अब यह देश बहुत कुछ कहना चाहता है -  ये देश ,कुर्बानी नहीं मा...

अपनी असीमित क्षमता को जागृत करें

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दोस्तों  ! जन्म के साथ ही हम असीमित क्षमताओं से परिपूर्ण होते है। लेकिन हमारी यह क्षमताएं  क्या समय के साथ क्षीण हो जाती हैं ? नहीं । हम अपनी सोयी हुई क्षमताओं को कभी जागृत ही नहीं कर पाते , हम केवल वही कार्य करते हैं जो हमें सिखाया जाता है ।जैसे हमें निर्देश प्राप्त होते हैं । हम उसी दिशा में आगे बढ़ने लगते हैं क्योंकि समय तेजी से निकल जाता है और आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में, जो कुछ और सोचने के लिए रुक गया, वह पीछे रह जाता है । यह मेरा नहीं हमारे समाज हमारे परंपराओं का मानना है और इसी भागदौड़ के चक्कर में हम अपने क्षमताओं का अवमूल्यन करना भूल जाते हैं और ताउम्र जीवन के मायाजाल में संघर्ष करते रहते हैं।  ऐसा क्यों होता है ? इसलिए कि हमने कभी शांत चित्त से एकाग्र होकर चिंतन मनन नहीं किया। यदि किया होता तो हम जान पाते हैं कि हम कितनी असीम संभावनाओं से परिपूर्ण है । हम में समर्थ है , क्षमता है , सब कुछ पाने की । हासिल करने की।  ।।बशर्ते हम चाहे तो ।। एक सकारात्मक व्यक्ति के तौर पर हमें चाहिए कि लगातार उस चीज‌ का ‌ , लक्ष्य  का,‌ चिंतन करते रहे जो हम पाना चाहते है...