उड़ान
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पर मुझे नहीं पसंद बेटी होने की बंदिश। आज़ाद होना चाहती हूँ इस समाज की जंजीरों से। इस कलिष्ट मानसिकता वाले समाज की सोच से दूर जाना चाहती हूँ। दम घुटता हैं मेरा ! मन करता है सभ कुछ छोड़कर कही चली जाऊं। जहाँ सिर्फ शांति हो और कोई समाज की बंदिश न हो, एक ऐसी दुनिया की तलाश में हूँ जो मेरे हिसाब से मुझे जीने दे। मुझे इस दुनिया की जंजीरो से आज़ाद होना है। आखिर कब तक यूँ ही सहती रहूंगी, घुटती रहूँगी, तड़पती रहूँगी। अब नहीं होता !!
मुझे बचपन से यही सिखाया गया है कि बेटियाँ हमेशा मर्यादा में रहती है, तुम्हे भी रहना होगा अन्यथा तुम्हे ये समाज चरित्रहीन करार देगा। पर अगर यही काम बेटे करें तो उनकी गलतियों पर पर्दा दाल दिया जाता है।
आखिर ये समाज की कैसी रीत है ? आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में प्रगति कर रही है। पर फिर भी लोगो की सोच वही हैं। आज भी एक बाप अपनी बेटी को बाहर कमाने जाने की अनुमति देने से पहले चार बार सोचता है ,आखिर क्यों ? ज़वाब मौन है। क्यूँकि पुरुष प्रधान समाज को औरत की बराबरी स्वीकार नहीं। ऐसे लोगों को औरत के साथ खड़े होने में शर्म आती है। पुरुष प्रधान समाज को ये बात नागवार गुजरती है कि एक महिला कैसे पुरुषों का नेतृत्व कर सकती है। और ये कटु सच्चाई है की बेटियों को आज भी वो स्वतंत्रता, वो स्वछंदता, वो अधिकार नहीं मिले जिनकी वो हकदार है !!
बस ईश्वर से यही प्रार्थना है की मुझे इतनी काबिल बनाएं की समाज के उत्थान के लिए कार्य कर सकूँ। ताकि समाज मुझ पर फ़र्क करें।
लेख कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताइयेगा।।
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