बाबुल की चिड़िया

ये ज़िन्दगी क्या है ! समझ नहीं आता। रोज कोई न कोई नई परेशानी. ये रिश्ते इतने मुश्किल क्यों होते है ? फिर चाहे वो दोस्ती का रिश्ता ही क्यों न हो ? कहते है कि हर रिश्ते को बहुत ही प्यार से सहेजना पड़ता है , अगर एक बार टूट गया तो गांठ पड़ जाती है। फिर भी सब कुछ जानते हुए हम कई बार ये गलती कर बैठते है जिससे रिश्तों में खटास पड़ जाती है। लेकिन फिर भी हम अपनी गलती को मानने के लिए तैयार नहीं होते।
कारण हम चाहते है कि लोग हमारे मन की बात समझ जाए। हमारे बिना बोले ही वो हमारी हर जरूरत को पूरा करे। जैसे माँ होती है ना जो बिना बोले ही अपने बच्चों के मन की बात समझ जाती है वैसे ही उम्मीद हम दुनियादारी के रिश्तों से लगा बैठते है। लेकिन माँ तो माँ होती है , उसकी जगह दूसरा कोई नहीं ले सकता। बस इन्हीं छोटी छोटी गलतियों की वजह से हम अपने रिश्तें ख़त्म कर देते है। और जीवनभर पश्चताप की अग्नि में सुलगते रहते है। क्यूंकि बात फिर स्वाभिमान पर आ जाती है कि आखिर पहल करें कौन ? हम क्यों करें गलती उसकी है वो माफी माँगे , और सामने वाला भी यही भावना से पहल नहीं करता फिर धीरे धीरे बोलचाल बंद फिर ये नाराजग़ी कब नफरत में बदल जाती है जान ही नहीं पाते। फिर इसी के साथ जीवन जीना सीख जाते है।
ये सच है कि दोस्ती में कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए।
दोस्ती तो पंख फैलाकर एक-दूसरे का साथ निभाने का नाम है।
यहाँ लफ़्जों के लहज़े का भाव नहीं होता
यहाँ मान-अपमान का भेद नहीं होता
यहाँ सब एक बराबर है।
दोस्ती ही ऐसा रिश्ता है जहाँ दिल खोलकर गाली देने की आजादी है।
जमकर लड़ाई झगड़ा करने की आजादी है।
वैसे तो दोस्ती ऐसी होने चाहिए जहाँ कोई स्वार्थ न हो
लेकिन यह भी कटु सत्य है कि
आजकल बिना स्वार्थ के कोई दोस्ती नहीं करता।
तो आखिर क्या नाम दूँ इस दोस्ती को ............
लेनदारी या सौदा ?
इसलिते अभी समय है माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता, अपने रिश्तों को बिगड़ने से बचाएं, जीवन बहुत लंबा है और ऐसे बेशक़ीमती रिश्ते, दोस्त फिर नहीं मिलेंगे। सोचिएगा जरूर।
Comments
Post a Comment