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बाबुल की चिड़िया

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अब बाबुल की चिड़िया  बड़ी हो गई है , अकेले सफर पर  निकल पड़ी है , आज निकली हैं, अपने घोंसले से अकेली  अनजाने लोगों के बीच  नए सफर की शुरुआत हैं, थोड़ा डर है  थोड़ी झिझक है  लेकिन एक नया  आत्मविश्वास है  आप पीछे मुड़ने का  कोई सवाल नहीं  अब आगे कदम बढ़ाते जाना हैं , खुद को आने वाली कठिनाइयों से बचाना है सम्हल सम्हल कर कदम बढ़ाना हैं  सपनों को पूरा  करते जाना हैं  ना झिझकना हैं  ना डरना‌ हैं  बस विश्वास से आगे बढ़ना हैं। हौसला बुलंद रखना है 

उड़ान

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 घर के आँगन की रौनक, माँ की परछाई, पिता का गुरुर, भाई की कलाई की शोभा आदि न जाने कितनी उपमाएं दी है सबने बेटियों को। हमेशा बेटी को फूल सी नाजुक समझा, माना और बताया। पर बेटी से कभी किसी ने नहीं पूछा की तुझे कौन सी उपमा चाहिए ? बस हमेशा से बेटियों पर हक जताते रहे और क्यों न जताए आख़िर बेटी हो  तुम हमारे घर की।  पर मुझे नहीं पसंद बेटी होने की बंदिश। आज़ाद होना चाहती हूँ इस समाज की जंजीरों से। इस कलिष्ट मानसिकता वाले समाज की सोच से दूर जाना चाहती हूँ। दम घुटता हैं मेरा ! मन करता है सभ कुछ छोड़कर कही चली जाऊं। जहाँ सिर्फ शांति हो और कोई समाज की बंदिश न हो, एक ऐसी दुनिया की तलाश में हूँ जो मेरे हिसाब से मुझे जीने दे।  मुझे इस दुनिया की जंजीरो से आज़ाद होना है। आखिर कब तक यूँ ही सहती रहूंगी, घुटती रहूँगी, तड़पती रहूँगी। अब नहीं होता !!    मुझे बचपन से यही सिखाया गया है कि बेटियाँ हमेशा मर्यादा में रहती है, तुम्हे भी रहना होगा अन्यथा तुम्हे ये समाज चरित्रहीन करार देगा। पर अगर यही काम बेटे करें तो उनकी गलतियों पर पर्दा दाल दिया जाता है।  आखिर ये समाज की कै...

अपनी क्षमता पहचानो

दोस्तों ! आज का समय प्रतिस्पर्धाओं का है ।आज हर कोई चाहता है कि वह शीघ्र सफलता प्राप्त करें। हर विद्यार्थी बहुत मेहनत करता है ,अपने सपनों को पाने की। लेकिन क्या जो सपना आप देख रहे हो या जिस लक्ष्य के पीछे आप मेहनत कर रहे हो क्या वाकई में वह स्वयं आपका है ? आज हमारे सपने हमारे नहीं रहे ।हम केवल दूसरों को दिखाने के लिए या अपने माता-पिता की खुशी के लिए सपने देखते हैं ,लक्ष्य बनाते हैं , और उन्हें पाने में जुट जाते हैं किंतु हम ये सोचते ही नहीं कि क्या वाकई में, मैं इस लायक हूं या मैं इतनी क्षमता रखती हूं कि इसे पा सकूं। आप खुद सोचिए क्या यह संभव है कि 10 अफसरों की कुर्सियों पर 50,000 लोगों को बैठाया जाए। नहीं ना फिर भी हर वर्ष लाखों लोग इन प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी किस्मत आजमाते हैं , कुछ यह सोचते हैं कि तुक्का  लगा कर आ जाएंगे शायद सही निकल जाए । कुछ तो केवल दोस्तों की देखा देखी भर देते हैं पर उन सब में कुछ विरले  ही होते हैं , जो यह ठान कर जाते हैं उन्हें परीक्षा पास करनी ही है और ऐसे लोग ही सफलता पाते हैं।                   ...