बाबुल की चिड़िया

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अब बाबुल की चिड़िया  बड़ी हो गई है , अकेले सफर पर  निकल पड़ी है , आज निकली हैं, अपने घोंसले से अकेली  अनजाने लोगों के बीच  नए सफर की शुरुआत हैं, थोड़ा डर है  थोड़ी झिझक है  लेकिन एक नया  आत्मविश्वास है  आप पीछे मुड़ने का  कोई सवाल नहीं  अब आगे कदम बढ़ाते जाना हैं , खुद को आने वाली कठिनाइयों से बचाना है सम्हल सम्हल कर कदम बढ़ाना हैं  सपनों को पूरा  करते जाना हैं  ना झिझकना हैं  ना डरना‌ हैं  बस विश्वास से आगे बढ़ना हैं। हौसला बुलंद रखना है 

ज़िद

दोस्तों ये ज़िद ही तो है जो हमसे सब करवाती है। जब तक हम ज़िद नहीं करते, तब तक हमारी ख्वाहिशें पूरी नहीं होती। वह ज़िद ही होती है, जिसकी बदौलत हम बड़ा मुकाम हासिल कर पाते हैं। ज़िद करनी ही चाहिए लेकिन कैैैसी?

ये इस कविता में पढ़िए -

ज़िद हैं तो मुमकिन हैै।

ज़िद है कुछ हासिल करने की।
ज़िद हैं कामयाब बनने की।
ज़िद हैं लक्ष्य को पाने की ।
जिद है कुछ कर गुजर जाने की।
जिद है इंसानियत की मिसाल बनाने की।
ज़िद हैं ख्वाहिशों को पंख लगाने की।
ज़िद हैं इतिहास रचने की। 
ज़िद हैं आजादी की उड़ान की।
ज़िद हैं चाहतो को पूरा करने की।
ज़िद हैं अपनी पहचान बनाने की।

तो दोस्तो ! जिद्दी बनिए , हौसला बनाए रखिए, और जुट जाइए ख्वाबों को पूरा करने में।
बड़े सपने देखिए और उनके पूरा होने में यकीन रखिए लेकिन मेहनत से कोई समझौता नहीं करें, उसका कोई विकल्प नहीं होता। 





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