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बाबुल की चिड़िया

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अब बाबुल की चिड़िया  बड़ी हो गई है , अकेले सफर पर  निकल पड़ी है , आज निकली हैं, अपने घोंसले से अकेली  अनजाने लोगों के बीच  नए सफर की शुरुआत हैं, थोड़ा डर है  थोड़ी झिझक है  लेकिन एक नया  आत्मविश्वास है  आप पीछे मुड़ने का  कोई सवाल नहीं  अब आगे कदम बढ़ाते जाना हैं , खुद को आने वाली कठिनाइयों से बचाना है सम्हल सम्हल कर कदम बढ़ाना हैं  सपनों को पूरा  करते जाना हैं  ना झिझकना हैं  ना डरना‌ हैं  बस विश्वास से आगे बढ़ना हैं। हौसला बुलंद रखना है 

मेरी पहली कविता

मुझे आज भी याद है मैं कक्षा छठवीं में थी और पहली बार हमें शिक्षक दिवस पर कुछ प्रस्तुत करने का मौका मिला था। समझ नहीं आ रहा था क्या करें ?तो सीनियर्स ने कहा कि कोई कविता सुना दो, किसी मैगजीन वगैरह से देखकर । हमने सोचा चलो कविता ही सुनना है तो खुद लिखकर देखते हैं, तो बस सोचा, तुकबंदी जमाई और कविता बन गई और सच में टीचर्स को बहुत पसंद भी आई । एक मैडम ने तो लिखकर रख ली । एक ने पूछा कि यह कहां से ढूंढी ? हमने कहा खुद लिखी है लेकिन उन्हें यकीन नहीं हो रहा था। पर मजा आया ,कार्यक्रम अच्छा रहा। वह पहला मौका था, जब मैंने मंच पर अपनी प्रस्तुति दी।  तो कविता कुछ इस प्रकार है हम बच्चे है दिल के सच्चे  गुरु हमारे मन में बसते गुरु की राह पर चलकर ही हम देश की रक्षा करते है गुरु को लगते बच्चे प्यारे  हम बच्चे है सबसे न्यारे इस दुनिया में गुरु न होते  तो ये दुनिया कैसी होती गुरुओं के बिन ये दुनिया तो सुनी सुनी सी होती सुनी सुनी सी होती सुनी सुनी सी होती.......